क्या होता अगर चाँद न होता ?



आपके मन में ये सवाल कभी न कभी तो आया ही होगा की अगर चाँद न होता तो क्या होता ? 
अगर चाँद न होता तो क्या हमारी धरती ऐसी ही होती जैसी की आज हम देख पा रहे हैं? क्या महासागर इसी तरह से व्यवस्तिथ होते जैसे की आज है ? और भी बोहोत से सवाल हैं जो आपको कभी न कभी परेसान तो किये ही होंगे।तो आज मैं इसी बारे में आपसे बताऊंगा की यदि चाँद न होता तो क्या होता ?
चाँद का होना या न होना हमारी धरती को बोहोत प्रभावित करता है । पृथ्वी का वातावरण, मौसम और भी बोहोत सी मौलिक चीज़े चाँद से प्रभावित होती हैं ।

नीचे मैंआपको कुछ पॉइंट्स में समझाने का  प्रयत्न करूँगा की चाँद हमारे और हमारी पृथ्वी की गतिविधियों को कितना प्रभावित करता है।

 यही चंद्रमा यदि न होता, तो पृथ्वी पर का नज़ारा कुछ और ही होता. न चांदनी रातें होतीं,
न कवियों की कल्पनाएं. रातें और भी अंधियारी और कुछ और ठंडी होतीं- इसलिए, क्योंकि चंद्रमा अपने ऊपर पड़ने वाले सूर्य-प्रकाश और उसकी गर्मी का एक हिस्सा पृथ्वी की तरफ परावर्तित कर देता है.                   
सबसे बड़ी बात यह होती कि पृथ्वी पर के समुद्रों में ज्वार-भटा भी नहीं आता. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से ही पृथ्वी पर ज्वार-भाटा पैदा होता है. बहुत संभव है कि समुद्री जलधाराओं की दिशाएं भी आज जैसी नहीं होतीं.

चाँद के न होने से दिन कितना बड़ा होता ?

ज्वार-भाटा अपनी धुरी पर घूमने की पृथ्वी की अक्षगति को धीमा करते हैं. ज्वार-भाटे न होते तो पृथ्वी पर दिन 24 घंटे से कम का होता. कितना कम होता, कहना कठिन है- शायद 6 घंटे छोटा होता, शायद 10 घंटे भी छोटा होता.

 यह भी हिसाब लगाया गया है कि डायनॉसरों वाले युग में, जब चंद्रमा आज की अपेक्षा पृथ्वी के निकट हुआ करता था, उसके गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण पृथ्वी पर एक दिन 24 नहीं, साढ़े 23 घंटे का हुआ करता था और कुछेक अरब साल पहले केवल 4 से 5 घंटे का ही एक दिन हुआ करता था. 

चाँद न होता तो क्या हम भी न होते ?

 कुछ ऐसी वैज्ञानिक अवधारणाएँ भी हैं, जो कहती हैं कि यदि चंद्रमा नहीं होता, तो पृथ्वी पर मानव जाति का अभी तक उदय भी नहीं हुआ होता-- यानी विकासवाद अभी बंदरों और जानवरों तक ही पहुँच पाया होता. ऐसा इसलिए, क्योंकि चंद्रमा के न होने पर ज्वार-भाटे नहीं होते और उनके न होने से भूमि और समुद्री जल के बीच पोषक तत्वों के आदान-प्रदान की क्रिया बहुत धीमी पड़ जाती. इससे सारी विकसवादी प्रक्रिया ही धीमी पड़ जाती.

चंद्रमा के कारण पृथ्वी की अक्षगति का धीमा पड़ना आज भी जारी है. हर सौ वर्षों में वह 0.0016 सेकंड, यानी हर 50 हज़ार वर्षों में एक सेकंड की दर से धीमी पड़ रही है.

हमसे बढ़ती चाँद की दुरी

 पृथ्वी की गति धीमी पड़ रही है, और चंद्रमा की बढ़ रही है. अक्षगति बढ़ने से वह पृथ्वी से दूर जा रहा है--प्रतिवर्ष करीब 3 सेंटीमीटर की दर से दूर जा रहा है. एक समय ऐसा भी आयेगा, जब चंद्रमा आज की अपेक्षा डेढ़ गुना दूर चला जायेगा. और तब पृथ्वी पर के केवल एक हिस्से के लोग ही चंद्रमा को देख पायेंगे, दूसरे हिस्से के लोग नहीं, बशर्ते कि तब तक पृथ्वी पर जीवन है और मनुष्य भी रहते हैं.

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